Jag Ka Sitra

जग का सितारा


था जग का सितारा, जीवन का सहारा
वल्लभ गुरू प्यारा, वल्लभ गुरू प्यारा

  हज़ारों  दिलों का था, तसवीर वल्लभ
  लाखों भक्तों का था, तकदीर वल्लभ
नयनों से इक दर्द की, बहती थी धारा
  वह आया था दुखीयों का, बनके सहारा, था जग...
 
  निर्धन के सपनों का, वल्लभ था चमन इक
  इन्सानियत का वो, अनमोल धन इक
  था उसकी दया का, हर रंग न्यारा
  बहारों ने था रूप, वल्लभ पे वारा, था जग...
 
  वह देवता था या, भगवान कोई
  नहीं जान सकता है इन्सान कोई
  मिला जब अत्म से, उसके इशारा
  लगा वर्ष था अभी, उसको अठारह, था जग...
 
  लुटाए अहिंसा के भक्तों को मोती
  जगाई थी फिर रावी तट पे ज्योती
  बजाया अहिंसा क, जग म नगाड़ा 
  महक उठा  खुश्बू से जगत आज सारा, था जग.....
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