Insan Kahte Hain
कभी धनवान है इतना कभी इन्सान निर्धन है
कभी सुख है कभी दुख है इसी का नाम जीवन है
जो मुश्किल मे ना घबराए उसे इन्सान कहते हैं
ये दुनिया एक उलझन है कहीं दोखा कहीं ठोकर
कोई हस हस के जीता है कोई जीता है रो रो कर
जो गिर कर भी संभल जाये उसे इन्सान कहते हैं
अगर गलती रुलाती है तो सही रह भी दिखाती है
मनुज गलती का पुतला है, वो अकसर हो ही जाती है
जो गलती कर के पछताये उसे इन्सान कहते हैं
अकेले ही जो खा खा कर सदा गुज़रा कर ते हैं
यूं भरने को तो दुनिया मे पशु भी पेट भरते हैं
"पथिक" जो बांट कर खाएं उसे इन्सान कहते हैं